Sunday, 26 August 2018

My book Review- Lakhnavi Nawab by Janpriya Lekhak Om Prakash Sharma

लखनवी नवाब- लेखक जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा


किताबों की दुनिया से मुझे बचपन से लगाव रहा है, करीब 7-8 साल का था तब से कॉमिक्स का शौक चढ़ा जो की अब भी चालू है धीरे धीरे ही यह आकर्षण बढ़ता ही रहा और जैसे जैसे उम्र बढ़ती रही मैं कॉमिक्स के साथ साथ अन्य किताबों को पढ़ने लगा. घर में माता जी और पिता जी भी विभिन्न प्रकार की मैगज़ीन, पाठ्य, जीवनियाँ और नॉवेल लाया ही करते थे, तो मुझे हमेशा कुछ न कुछ पढ़ने को मिलता रहता था. हिन्दी भाषी होने तथा जादतर पढ़ाई भी हिन्दी मीडियम के स्कूल से करे के कारण हिन्दी भाषा से मेरा खास लगाव भी है. हालांकि अब नौकरी की भाग दौड़ में नॉवेल तथा किताबें पढ़ने के लिए जरा समय कम मिल पाता है फिर भी प्रयास करता हूँ की जितना हो सके कुछ ना कुछ नया पढ़ता रहूँ, वैसे भी किताबें तनाव या परेशानी में मेरे लिए औषधि का कार्य करती हैं.
कल मैं अपने छोटे से नॉवेल संग्रह में पढ़ने के लिए नॉवेल खोज रहा था और तभी मुझे एक यह किताब मिली. जासूस जो की एक मासिक पत्रिका थी उसका मार्च 1965 का अंक. यह पत्रिका सन 1948 से लाला नारायनदास गर्ग के स्वामित्व में रंगमहल प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित की जा रही थी [हालांकि इसका प्रकाशन बंद कब हुआ यह जानकारी मुझे नहीं है]. किताब के प्रथम कुछ पृष्ठों से आगे बढ़ा तो इसमें मुझे महान लेखक ओम प्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित कृति लखनवी जासूस प्राप्त हुई और मैं बैठ गया इसे पढ़ने.
कहानी को लखनऊ के नवाब नवाब वाजिद अली शाह के शासन के समय सेट किया गया है, वहाँ के एक सम्पन्न सौदागर की बेटी अपहृत कर ली जाती है परंतु विभिन्न प्रयासों के बावजूद भी पुलिस उसका पता नहीं लगा पाती है. इस पर लखनऊ के रेजीमेंट स्लीमन द्वारा चुनौती दिये जाने पर नवाब उससे शर्त लगाते हैं कि 1 महीने के अंदर अंदर वो सौदागर कि बेटी को खोज निकालेंगे और फिर अपने सबसे प्रतिष्ठित जासूस चतुरी पांडे को यह ज़िम्मेदारी सौंपते हैं. चतुरी यह कार्य अपने शिष्य नज़ीर के सहयोग से करने का फैसला करते हैं और इसके साथ ही शुरू होती है एक कहानी जिसमें उनका पाला कई लोगों से होता है जैसे एक झूठा मक्कार फकीर जिसका धर्म लोगो की सेवा करना नहीं परंतु धन कमाना, एक सौदागर जो कि अपने फायदे के लिए देश को भी बेचने पे तुला है, एक पागल औरत जो कि एक सम्पन्न परिवार की होते हुए भी दर दर भटक रही है. इसी कहानी में चतुरी जी अपने पुराने मित्र के पुत्र से भी मिलते हैं जो कि अंग्रेजों से प्रताड़ित किया हुआ है और अब उनके विरोध के लिए एक छोटी सेना का प्रतिनिधित्व कर रहा है.
हालांकि पत्रिका का नाम जासूस होने से इस नॉवेल को जासूसी श्रेणी में प्रकाशित किया गया है परंतु मैं इसे सिर्फ जासूसी श्रेणी में तो नहीं गिनूँगा. मेरी नज़र में यह एक साहसिक घटनाओं वाली नॉवेल की श्रेणी में अधिक फिट बैठती है. लेखक ओम प्रकाश शर्मा जी ने नवाब वाजिद के समय की सामाजिक स्थिति का भी चित्रण करने का प्रयास किया है तथा कहानी के माध्यम से यह भी प्रदर्शित का प्रयास किया है कि किस प्रकार अंग्रेज़ धीरे धीरे करके भारत वर्ष के विभिन्न संप्रान्तों पर अपना कब्जा जमा रहे थे. नॉवेल के अंत तक लेखक ने यह भी चित्रण किया है कि जहां एक तरफ अंग्रेज़ भारत में अपने पैर जामा चुके थे वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ विद्रोह के भी बीज पड़ चुके थे जिसमें भाग लेने के लिए हर प्रकार तथा वर्ग के स्त्री – पुरुष जुडने लगे थे फिर चाहे वो कोई बुजुर्ग जासूस हो, नौजवान युवा हो, नया शादीशुदा जोड़ा हो या फिर कोई विधवा महिला.

भले ही कहानी में कमियाँ हैं परंतु मैं ओम प्रकाश शर्मा जी की इस कृति के लिए सराहना जरूर करूंगा.

My Rating- 3.5/5




Book Review: Roshni Ki Udan [Jasoosi Duniya issue 309] by Ibne Safi B.A.

जासूसी दुनिया अंक 309- रोशनी की उड़ान [लेखक- इब्ने सफ़ी बी.ए.] सप्ताहांत की शुरुआत हो चुकी है. पिछले हफ्ते कई कारणों से कोई भी किताब ...